Jhalawar फिल्मी गानों पर नृत्य की जगह भरतनाट्यम, कथक और लोक नृत्य प्रस्तुत किए जाएंगे

Jhalawar फिल्मी गानों पर नृत्य की जगह भरतनाट्यम, कथक और लोक नृत्य प्रस्तुत किए जाएंगे
 
झालावाड़ न्यूज़ डेस्क, झालावाड़ सरकारी व निजी विद्यालयों में विद्यार्थी अब ढोल, तबला, बांसुरी और शहनाई बजाते दिखेंगे। फिल्मी गानों पर नृत्य की जगह भी भरतानाट्यम, कथकली, कुचिपुड़ी और राजस्थानी लोक नृत्य करते नजर आएंगे। वहीं, महापुरुषों व देशभक्तों के जीवन पर आधारित नाटक भी करेंगे। यह सब सरकार के नवाचारी कला उत्सव के तहत होगा। जिसमें देश की पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा देने के लिए जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएगी। कक्षा 9 से 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए आयोजित प्रतियोगिताओं में संस्कृत, नवोदय व केंद्रीय विद्यालय सहित सभी सरकारी व निजी स्कूलों के विद्यार्थी शामिल हो सकेंगे। दरअसल, राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद् की ओर से सभी सरकारी व निजी स्कूलों में कला महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों में कला के प्रति रुचि जागृत करना, सांस्कृतिक परंपराओं के विभिन्न कला स्वरुपों को प्रदर्शित व प्रचारित करना है।सरकारी स्कूलों में कला महोत्सव मनाया जाएगा। यह जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाएगा। यह जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाएगा। राज्य स्कूल शिक्षा परिषद् के परियोजना निदेशक व आयुक्त अविचल चतुर्वेदी ने गाइडलाइन भी जारी की है।

इन श्रेणियों में गैर फिल्मी होगा कार्यक्रम

वरिष्ठ व्यायाता डाइट सुरेन्द्र जैन ने बताया कि कला उत्सव छह श्रेणियों में गैर फिल्मी होगा। जिसमें भारतीय संगीत गायन, संगीत वादन, नृत्य, थिएटर और दृश्य कला में प्रतियोगिताएं होगी। संगीत गायन में शास्त्रीय, लोक या जनजातीय संगीत, धार्मिक और देशभक्ति गीत ही गाए जा सकेंगे। वादन में मृदंग, ढोल, एडक्का, तबला, ढोल, वायलिन, सितार, बांसूरी, सरोद, वीणा, शहनाई का उपयोग कर सकेंगे।

नृत्य में प्रतिभागी शास्त्रीय नृत्य कथक, सत्तरिया, कुचिपुडी, ओडिसी, मोहिनीअट्म, कथकली, सरायकेला एवं मणिपुरी नृत्य किए जा सकेंगे। थिएटर प्रतियोगिता में मोनो एक्ट, मिमिक्री, नाट्य मंचन होंगे, जो समाज सुधारक, कलाकार, लेखक, कवि, वैज्ञानिक, स्वतंत्रता सैनानी के जीवन से ओतप्रोत होंगे। दृश्य कला प्रतियोगिता दो तरह होगी।

पहली-द्विआयामी, जिसमें ड्राइंग, पेंटिग, प्रिंटिग, कार्टून, कैरिकेचर है। वहीं दूसरी-त्रि-आयामी में मूर्तिकला, मोबाइल आदि स्वदेशी खिलौने निर्माण शामिल किया है। पारंपरिक कहानी वाचन में प्रतिभागी कहानी वाचन में किसी एक या एक से अधिक कला स्वरुपों जैसे नृत्य, संगीत, दृश्यकला या नाटक का प्रयोग कर सकते हैं। प्रस्तुति किसी भी बोली या भाषा में दे सकते हैं।