Jaipur आरएमएससीएल ने हीमोफीलिया मरीजों के लिए 'कारगर' दवा की सप्लाई एक साल से रोकी
सामान्य के साथ जिन मरीजों में इन-हेबिटेटर डवलप हाे चुका उनके लिए बेहतर
कुछ मरीजों में स्वत: ब्लीडिंग नहीं होती तो कुछ में बिना कारण होने लगती है। इनमें फैक्टर आठ और फैक्टर नौ लगते हैं। काफी मरीजों में इन-हेबिटेटर डवलप हो जाते हैं। यानि इन फैक्टर (दवा) के प्रति रेसिस्टेंस डवलप हो जाता है और असर नहीं करते।जनरल के मुताबिक हीमोफीलिया ए के पेशेंट में इन-हेबिटेटर डवलप होने का रिस्क 30 प्रतिशत तक होता है। हीमोफीलिया बी के पांच प्रतिशत में इसका रिस्क होता है। ऐसे में अभी तक इन-हेबिटेटर डवलप हो चुके पेशेंट में 7 ए और एफईआईबीए को लगाया जाता रहा है लेकिन इन दोनों का ही कारगर नहीं होना सामने नहीं आया।
वजह रही कि 7 ए फेक्टर के पेशेंट को लगाए जाने के बाद अधिकतम पांच घंटे और एफईआईबीए के लगाने से अधिकतम 10 घंटे के लिए ब्लीडिंग रोका जा सकता है। 7ए जहां दो लाख रुपए तक का आता है वहीं एफईआईबीए एक लाख रुपए का ही आता है। लेकिन एमिजुमेब नॉन फेक्टर थेरेपी है जिसकी सहायता से पेशेंट में चार सप्ताह तक ब्लीड रोका जा सकता है।
एसएमएस के क्लिनिकल हेमेटोलॉजी के एसो. प्रोफेसर डॉ. विष्णु शर्मा का कहना है कि एमिजुमेब ना केवल इन-हेबिटेटर डवलप हो चुके पेशेंट के लिए बल्कि सामान्य हीमोफीलिया मरीजों के लिए भी कारगर है। इसे लगाने के लिए एक्सपर्ट की जरूरत नहीं होती और जिला स्तर पर नर्सिंग स्टाफ भी इसे लगा सकता है।अस्पतालों में एमिजुमेब उपलब्ध ही नहीं है। डॉक्टर्स की मानें तो वर्ष 2023 में कुछ संख्या में आए थे। यह इतना असरकारक था कि जोधपुर, उदयपुर, झालावाड़ तक से मरीज लगवाने के लिए आते थे। अब यह नहीं आ रहा है तो लोग आते भी नहीं। अन्य फैक्टर का असर पांच घंटे तक ही रहता है। ऐसे में आरएमएससीएल इसकी सप्लाई करे तो ना केवल करोड़ों रुपए की बचत होगी बल्कि मरीजों को भी बेहतर इलाज मिल सकेगा।