Jaipur आरएमएससीएल ने हीमोफीलिया मरीजों के लिए 'कारगर' दवा की सप्लाई एक साल से रोकी

Jaipur आरएमएससीएल ने हीमोफीलिया मरीजों के लिए 'कारगर' दवा की सप्लाई एक साल से रोकी
 
जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर  हीमोफीलिया के गंभीर मरीजों के लिए सस्ती और कारगर दवा एमिजुमेब की सप्लाई इन दिनों आरएमएसीएल से बंद है। यह दवा सामान्य और गंभीर मरीजों के लिए कारगर है। अभी तक कई तरह के ऐसे फैक्टर मरीजों को दिए जा रहे थे जो कि काफी महंगे भी थे।एसएमएस और जेके लोन अस्पताल के डॉक्टर्स ने मरीजों का इस दवा से किया तो चौंकाने वाले रिजल्ट आए। इसे इंटरनेशनल जनरल में भी पब्लिश किया गया है। आरएमएससीएल से इसकी सप्लाई नहीं होने की वजह से मरीजों को यह फैक्टर नहीं मिल पा रहा है। दूसरी ओर, विभाग की ओर से अन्य फैक्टर खरीदे जा रहे हैं जो कि मरीजों के लिए उतने कारगर भी नहीं हैं और उनकी कीमत भी काफी अधिक है। अभी एसएमएस ही हर महीने 60 से अधिक मरीज हीमोफीलिया के आ रहे हैं। इनमें भी 20 से अधिक मरीज नए होते हैं।"वर्ष 2023 में अन्य फैक्टर की जगह एमिजुमेब लगाया गया। इसके बेहतर रिजल्ट आए। इसके बाद जनरल में पब्लिश हुआ। अभी यह फैक्टर नहीं आ रहा है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि चार सप्ताह तक ब्लीड को रोक सकता है।"

सामान्य के साथ जिन मरीजों में इन-हेबिटेटर डवलप हाे चुका उनके लिए बेहतर

कुछ मरीजों में स्वत: ब्लीडिंग नहीं होती तो कुछ में बिना कारण होने लगती है। इनमें फैक्टर आठ और फैक्टर नौ लगते हैं। काफी मरीजों में इन-हेबिटेटर डवलप हो जाते हैं। यानि इन फैक्टर (दवा) के प्रति रेसिस्टेंस डवलप हो जाता है और असर नहीं करते।जनरल के मुताबिक हीमोफीलिया ए के पेशेंट में इन-हेबिटेटर डवलप होने का रिस्क 30 प्रतिशत तक होता है। हीमोफीलिया बी के पांच प्रतिशत में इसका रिस्क होता है। ऐसे में अभी तक इन-हेबिटेटर डवलप हो चुके पेशेंट में 7 ए और एफईआईबीए को लगाया जाता रहा है लेकिन इन दोनों का ही कारगर नहीं होना सामने नहीं आया।

वजह रही कि 7 ए फेक्टर के पेशेंट को लगाए जाने के बाद अधिकतम पांच घंटे और एफईआईबीए के लगाने से अधिकतम 10 घंटे के लिए ब्लीडिंग रोका जा सकता है। 7ए जहां दो लाख रुपए तक का आता है वहीं एफईआईबीए एक लाख रुपए का ही आता है। लेकिन एमिजुमेब नॉन फेक्टर थेरेपी है जिसकी सहायता से पेशेंट में चार सप्ताह तक ब्लीड रोका जा सकता है।

एसएमएस के क्लिनिकल हेमेटोलॉजी के एसो. प्रोफेसर डॉ. विष्णु शर्मा का कहना है कि एमिजुमेब ना केवल इन-हेबिटेटर डवलप हो चुके पेशेंट के लिए बल्कि सामान्य हीमोफीलिया मरीजों के लिए भी कारगर है। इसे लगाने के लिए एक्सपर्ट की जरूरत नहीं होती और जिला स्तर पर नर्सिंग स्टाफ भी इसे लगा सकता है।अस्पतालों में एमिजुमेब उपलब्ध ही नहीं है। डॉक्टर्स की मानें तो वर्ष 2023 में कुछ संख्या में आए थे। यह इतना असरकारक था कि जोधपुर, उदयपुर, झालावाड़ तक से मरीज लगवाने के लिए आते थे। अब यह नहीं आ रहा है तो लोग आते भी नहीं। अन्य फैक्टर का असर पांच घंटे तक ही रहता है। ऐसे में आरएमएससीएल इसकी सप्लाई करे तो ना केवल करोड़ों रुपए की बचत होगी बल्कि मरीजों को भी बेहतर इलाज मिल सकेगा।