'समस्याओं के समाधान के लिए...' नगर निकायों में प्रशासक लगाने को लेकर भजनलाल सरकार पर भड़के टीकाराम जूली

'समस्याओं के समाधान के लिए...' नगर निकायों में प्रशासक लगाने को लेकर भजनलाल सरकार पर भड़के टीकाराम जूली
 

जयपुर न्यूज़ डेस्क, राजस्थान सरकार द्वारा 49 नगर निकायों में प्रशासक लगाये जाने का फैसला लिया गया. अब इस फैसले का कड़ा विरोध देखने को मिल रहा है. इसी कड़ी में राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का यह कदम पूरी तरह से असंवैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने वाला है. टीकाराम जूली ने कहा कि सरकार ने राज्य के पांच नगर निगम, 20 नगर परिषद और 24 नगर पालिका का कार्यकाल समाप्त होने का तर्क देकर इनमें सरकारी अधिकारियों को प्रशासक लगा दिया है.  जबकि सरकार को इन निकायों की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए इनमें तत्काल चुनाव कराने की घोषणा करनी चाहिए थी. उन्होंने सरकार से मांग की है कि इन निकायों के बिना देर किए चुनाव कराये जाएं. 

हार के डर से चुनाव नहीं करा रही BJP: जूली

जूली ने कहा कि इसके पीछे राज्य सरकार 'वन स्टेट वन इलेक्शन' एजेंडे का बहाना बना रही है. लेकिन सच तो यह है कि राज्य की भाजपा सरकार इन नगर निकायों के चुनाव अपनी पराजय के भय से नहीं कराना चाहती है. प्रदेश के अनेक नगर निकायों का कार्यकाल पूरा होने में अभी 1 साल और इससे ज्यादा का समय बाकी है. तब तक राज्य सरकार कार्यकाल पूरा कर चुके नगर निकायों में नगर निगमों को जिला कलेक्टर, नगर परिषदों को ADM और नगर पालिकाओं को SDM स्तर के सरकारी अधिकारियों के भरोसे चलाना चाहती है.

सरकार के इस कदम का किया कड़ा विरोध

जूली ने कहा कि सरकार का यह रवैया लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने वाला है. आम जनता को उनके निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से वंचित करने की राज्य सरकार की यह चेष्टा अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है. सरकार के इस कदम से इन निकायों में अव्यवस्था पनपेगी और आम जनता अपनी रोजमर्रा की समस्याओं के निराकरण के लिए तरसेगी. नगर निकायों में नौकरशाही को हावी करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.

सरकार अपनी मनमानी थोपना चाहती है: जूली

नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि यह दुर्भाग्य का विषय है कि जब सब ओर संविधान दिवस मनाने की तैयारियां चल रही थी. उसके एक दिन पहले राजस्थान में राज्य सरकार ने यह कदम उठाकर सिद्ध किया है कि सरकार लोकतंत्र पर अपनी मनमानी थोपना चाहती है और उसका संविधान में कोई विश्वास नहीं है.