Sawan Putrada Ekadashi 2024 पर जरूर पढ़ें यह कथा, होगी पुत्र रत्न की प्राप्ति!

Sawan Putrada Ekadashi 2024 पर जरूर पढ़ें यह कथा, होगी पुत्र रत्न की प्राप्ति!
 
Sawan Putrada Ekadashi 2024 पर जरूर पढ़ें यह कथा, होगी पुत्र रत्न की प्राप्ति!

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार मनाएं जाते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन एकादशी व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है। पंचांग के अनुसार अभी सावन का महीना चल रहा है और इस माह पड़ने वाली एकादशी को सावन पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जा रहा है जो कि बेहद खास होती है एकादशी की तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा अर्चना को समर्पित है इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने का विधान होता है

Sawan Putrada Ekadashi 2024 पर जरूर पढ़ें यह कथा, होगी पुत्र रत्न की प्राप्ति!

मान्यता है कि एकादशी के दिन उपवास रखकर प्रभु की आराधना की जाए तो उत्तम फलों की प्राप्ति होती है इस साल सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत आज यानी 16 अगस्त दिन शुक्रवार को किया जा रहा है कोई भी व्रत बिना व्रत कथा के पूर्ण नहीं माना जाता है और ना ही व्रत पूजा का कोई फल प्राप्त होता है ऐसे में आज पुत्रदा एकादशी की पूजा के बाद यह व्रत कथा जरूर सुने या पढ़ें तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा। 

Sawan Putrada Ekadashi 2024 पर जरूर पढ़ें यह कथा, होगी पुत्र रत्न की प्राप्ति!

पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा—
द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी. महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन उसे पुत्र नहीं थे, इसलिए उसे राज्य पसंद नहीं था. उसे लगता था कि अविवाहित व्यक्ति को यहाँ और परलोक दोनों दुःख देते हैं. राजा ने बहुत कुछ किया लेकिन उसे पुत्र नहीं मिला. वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने अपने जनप्रतिनिधियों को बुलाया और कहा, “हे जनता! मेरे खजाने में अन्यायपूर्वक प्राप्त धन नहीं है. मैंने कभी ब्राह्मणों और देवताओं का धन नहीं छीना है. मैंने किसी दूसरे की संपत्ति भी नहीं ली, बल्कि जनता को पुत्र की तरह पालता रहा. मैं अपराधियों को बाँधवों और पुत्रों की तरह दंड देता रहा. ”

राजा ने आगे कहा कि किसी से कभी घृणा नहीं की. सब लोग समान हैं. सज्जनों को मैं हर समय पूजता हूँ. मैं इस प्रकार धर्मपूर्ण राज्य करते हुए भी अपने पुत्र को नहीं मानता. यही कारण है कि मैं बहुत दुखी हूँ. राजा महीजित की इस बात पर मंदिर और जनता के प्रतिनिधि वन गए. वहाँ बड़े-बड़े विद्वानों को देखा. राजा की अच्छी इच्छा को पूरा करने के लिए एक अच्छे तपस्वी मुनि को देखते रहे.

उसने एक आश्रम में एक महात्मा लोमश मुनि को देखा, जो बहुत पुराना धर्म जानता था, बहुत तपस्वी था, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार था, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध था, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानता था और सभी शास्त्रों को जानता था.

सब लोग जाकर गुरु को प्रणाम करने लगे. उन्हें देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग आने का क्या उद्देश्य था? नि:संदेह मैं आपके हित में काम करूँगा. मेरा जन्म केवल दूसरों की सेवा के लिए हुआ है, इसमें कोई संदेह नहीं है.

लोमश ऋषि की बात सुनकर सभी ने कहा, “हे महर्षे! आप ब्रह्मा से भी अधिक हमारी बात जानने में सक्षम हैं. हमारे इस संदेह को दूर करो. महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित जनता के पुत्र की तरह व्यवहार करता है. फिर भी वे अपने पुत्र की कमी से दुखी हैं.”

उन्होंने आगे कहा कि हम उसकी जनता हैं. हम भी उसके दर्द से दुखी हैं. आपके विचार से हमें पूरा विश्वास है कि हमारा यह संकट निश्चित रूप से दूर हो जाएगा, क्योंकि महान लोगों के सिर्फ देखने से बहुत सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. अब कृपया राजा का पुत्र बनने का तरीका बताओ.

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यह कहानी सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म की कहानी बताने लगे कि राजा पहले एक गरीब वैश्य था. निर्धनता ने कई बुरे काम किए. यह एक गांव से दूसरे गांव में व्यापार करता था.

वह एक बार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न, दो दिन से भूखा-प्यासा होकर एक जलाशय पर जल पीने गया. उसी जगह एक जल्दी ब्याही गौ जल पी रही थी.

राजा को यह दुःख सहना पड़ा क्योंकि उसने प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा. एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दर्द सहना पड़ रहा है. यह सुनते ही सब कहने लगे, हे ऋषि! शास्त्रों में पाप करने का प्रायश्चित भी बताया गया है. राजा का यह पाप किस प्रकार मिटाया जाए?

लोमश मुनि ने कहा कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, सब लोगों को व्रत करना चाहिए और रात्रि को जागरण करना चाहिए, इससे राजा का पूर्व जन्म का पाप नष्ट हो जाएगा और राजा को निश्चय की पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी.

लोमश ऋषि की बात सुनकर मंत्रियों सहित सारी जनता नगर को वापस आई. जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई, तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया. इसके बाद राजा को द्वादशी के दिन इसका वरदान दिया गया. उस वरदान के कारण रानी ने गर्भधारण किया और गर्भकाल पूरा होने पर उसे एक बड़ा सुंदर पुत्र हुआ.

हे राजन, इसलिए इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा रखा गया. संतान सुख की इच्छा पूरी करने वाले इस व्रत को अवश्य करना चाहिए. इसकी महिमा सुनने से मनुष्य सभी पापों से छुटकारा पाता है और इस दुनिया में सुख भोगता है और परलोक में स्वर्ग पाता है.

श्रीकृष्ण ने कहा- “हे पाण्डुनंदन! पुत्र पाने के लिए पुत्रदा एकादशी का उपवास करना चाहिए. पुत्र प्राप्ति के लिए इससे बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं माना गया है. जो कोई व्यक्ति पुत्रदा एकादशी के माहत्म्य को पढ़ता या सुनता है और विधानानुसार इसका उपवास करता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है. श्रीहरि की कृपा से वह मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है.”

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