बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव प्रस्तावित

बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव प्रस्तावित
 
बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव प्रस्तावित

बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावी तैयारियों में जुटी कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की तरह रोजगार के मुद्दे पर पदयात्रा निकालने जा रही है। जिसका नेतृत्व पार्टी की युवा और छात्र शाखा के प्रमुख कन्हैया कुमार करेंगे। सूत्रों के अनुसार 16 मार्च से 14 अप्रैल तक कांग्रेस के युवा छात्र नेता और कार्यकर्ता 'बिहार को रोजगार दो' यात्रा निकालेंगे। इस कार्यक्रम को बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने के तौर पर देखा जा रहा है।

कांग्रेस सूत्रों की मानें तो यह यात्रा बिहार के ऐतिहासिक पूर्वी चंपारण से शुरू होकर पटना तक जाएगी। 500 किलोमीटर लंबी यह पदयात्रा बिहार के 20 जिलों से होकर गुजरेगी। इस दौरान जगह-जगह रोजगार, पेपर लीक और पलायन जैसे मुद्दे उठाए जाएंगे। यह मार्च 100 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों को कवर करेगा। इस पदयात्रा के जरिए कांग्रेस मुद्दों के आधार पर युवाओं को पार्टी से जोड़ने की कोशिश कर रही है। मार्च के दौरान विभिन्न राज्यों से वरिष्ठ कांग्रेस नेता विभिन्न स्थानों पर शामिल होंगे। ऐसे में आइए राजनीतिक विशेषज्ञों से समझते हैं कि इस मार्च से कांग्रेस को कितना फायदा होगा?

पूरे बिहार में इसका कोई असर नहीं होगा।
कन्हैया कुमार के कूचबिहार का कितना असर होगा? इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा कि कांग्रेस बिहार में नई जमीन तलाश रही है। 30 साल पहले, बिहार में लालू यादव के सत्ता में आने से पहले, कांग्रेस बहुत अच्छी स्थिति में थी। पिछले कुछ वर्षों में बिहार के लोगों में राजनीतिक चेतना जागृत हुई है। कन्हैया कुमार की पदयात्रा का भागलपुर, खगड़िया, बेगूसराय और सिमरिया तथा आसपास के इलाकों पर असर हो सकता है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इसका असर पूरे बिहार पर पड़ेगा।

कन्हैया कुमार महत्वाकांक्षी हैं।
राजेश बादल ने कहा कि कांग्रेस को हर क्षेत्र के लिए अलग कन्हैया कुमार की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि कन्हैया कुमार की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह महत्वाकांक्षी हैं। वे अपने स्तर के किसी अन्य नेता को उभरने नहीं देना चाहते। बिहार में पार्टी की कमान संभाले हुए उन्हें कई साल हो गए, फिर भी उन्होंने अब तक राज्य कार्यकारिणी, जिला और प्रखंड स्तर पर संगठन क्यों नहीं खड़ा किया? कन्हैया कुमार के अलावा बिहार कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं है जिसका उनसे बड़ा प्रशंसक वर्ग हो। ऐसे में कांग्रेस के लिए वापसी करना बहुत मुश्किल होगा।

कांग्रेस का कदम सबसे अच्छा है।
बिहार में कांग्रेस की पदयात्रा को लेकर वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेरा ने कहा कि अगर कांग्रेस को अपने दम पर वापसी करनी है तो उसे जनता के बीच जाना होगा। कांग्रेस पिछले 30 वर्षों से बिहार में सत्ता से बाहर है। मंडल कमीशन, छात्र आंदोलन और राम मंदिर आंदोलन के बाद बिहार में कांग्रेस पूरी तरह खत्म हो गई। लालू यादव के प्रभाव से बिहार में जाति आधारित राजनीति का उदय हुआ। बिहार में कांग्रेस इसलिए जीवित है क्योंकि उसे लालू यादव का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में राहुल गांधी कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं को फिर से अपनी ओर आकर्षित करने में जुटे हैं। एनडीए के साथ नीतीश कुमार और चिराग पासवान जैसे बड़े चेहरे हैं। इन दोनों के साथ-साथ दलित और अति पिछड़ा वर्ग जैसे बड़े जातीय समुदाय भी हैं। जबकि लालू यादव हमेशा पिछड़ों को खुश करके आगे बढ़े हैं।

लालू यादव हो सकते हैं नाराज
तेजस्वी और लालू यादव को कन्हैया कुमार की आक्रामक राजनीति पसंद नहीं है। लोकसभा चुनाव में भी तेजस्वी ने बिहार में कन्हैया कुमार को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी, जिसके बाद कन्हैया को दिल्ली से टिकट दिया गया था। ऐसे में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए राहुल गांधी ने बड़ा कदम उठाया है। लालू यादव को यह कदम पसंद नहीं आएगा क्योंकि उन्हें तेजस्वी के राजनीतिक करियर की चिंता है। बेशक, कांग्रेस का फैसला अच्छा है, यह युवाओं को आकर्षित करेगा। अब परिणाम क्या होगा यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।