Begusarai अरे भाई, कोई ऐसे ही थोड़े न दावा करता है

Begusarai अरे भाई, कोई ऐसे ही थोड़े न दावा करता है
 
Begusarai अरे भाई, कोई ऐसे ही थोड़े न दावा करता है

बिहार न्यूज़ डेस्क लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही चौक-चौराहों पर राजनीतिक गपशप परवान पर है.  दीघा थाना से सटे चाय दुकान पर भी कुछ यूं ही चर्चा का दौर शुरू हुआ. सुबह के 11 बजे थे. कुछ लोग घरों से नाश्ता कर चाय दुकान पर फुरसत के पल बिताने आए थे. चाय पीने वालों की टोली में एक-दो युवा तो बाकी अधेड़ उम्र के लोग थे.

रामजीचक दीघा के सत्यनारायण राय ने चाय की चुस्की लेते हुए राजनीति की बातें छेड़ी. अपने मित्र रामाशीष सिंह से कहा कि क्या लगता है इस बार. 400 पार का नारा है, पार होगा? इससे पहले कि रामाशीष सिंह जवाब देते कि बीच में ही टोकते हुए महेंद्र राय ने कहा कि नेताओं का काम ही बोलना है. 400 पार करना आसान है क्या. इस पर रिटायर्ड एनके सिन्हा ने कहा कि अरे भाई, कोई ऐसे ही थोड़े न दावा करता है. विपक्ष में कोई है क्या. जवाब रामाशीष सिंह ने दिया-आखिर 400 पार का नारा क्यों न लगाया जाए. जब लोगों को बेटा-बेटी से फुरसत और जनता की कोई चिंता ही नहीं है तो कोई दावा क्यों न करे.

महेन्द्र राय ने हामी भरते हुए कहा कि नेता-कार्यकर्ता चप्पल घिस-घिसकर मरे जा रहे हैं और नेताजी अपना बेटा-बेटी को ही मौका देने में लगे हैं. पास खड़ा होकर चाय पी रहा मुकुल कूद पड़ा, कहा कि किडनी देने का यह अर्थ थोड़े है कि उसे राजनीति में उतार दिया जाए. दुनिया में कई ऐसे हैं जो बाप-भाई को नया जीवन देते रहे हैं. ऐसे में क्या वे राजनीति में उतर जा रहे हैं. जिस दल को खून-पसीना से नेता सींच रहे हैं उनको क्या मिला.

चाय ग्लास रखते हुए सत्यनारायण राय ने कहा कि इतिहास गवाह है. पुत्र मोह में खानदान का नाश हो गया. नेता अपने बेटा-बेटी के मोह में फंसे हुए हैं तो क्या कहा जाए. इस पर रामाशीष सिंह ने कहा कि हां तो इनका भी नाश तय है.

इनकी बात को आगे बढ़ाते हुए एनके सिन्हा कहते हैं कि किसी भी दल में नेताओं-कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है. लोग भी अच्छे हैं पर उनकी सुध कौन ले रहा है. इस पर पूरी टोली चिंतित दिखाई देती है. मुकुल ने कुछ देर के लिए छा गई खामोशी को तोड़ते हुए कहा-चाचा, छोंड़िए राजनीति की बातें. सभी दलों का एक ही हाल है. किसे सराहा जाए. आम आदमी की सुध कौन ले रहा है. सबको अपनी चिंता है. मुकुल की बात पर सबों ने हामी भरी. तब तक चाय का ग्लास खाली हो चुका था. चाय वाले रमेश को पैसा देने के बाद पूरी टोली बिखर गई. यह क्या, कुछ और लोग आ गए और फिर शुरू हो गई उनके बीच बातचीत. यह सिलसिला दिन भर यूं ही चलते रहता है.

 

 

बेगूसराय न्यूज़ डेस्क