घर खरीदने के लिए लोन लेने से पहले जान ले Defaulter के साथ क्‍या करता है बैंक ? जानिए कब आती है सम्पत्ति के नीलाम होने की नौबत

घर खरीदने के लिए लोन लेने से पहले जान ले Defaulter के साथ क्या करता है बैंक ? जानिए कब आती है सम्पत्ति के नीलाम होने की नौबत
 
घर खरीदने के लिए लोन लेने से पहले जान ले Defaulter के साथ क्‍या करता है बैंक ? जानिए कब आती है सम्पत्ति के नीलाम होने की नौबत

बिज़नेस न्यूज़ डेस्क - होम लोन एक लॉन्ग टर्म लोन होता है और बड़ी रकम होने की वजह से इसकी EMI भी अक्सर बड़ी होती है। इस दौरान कई बार लोगों के सामने ऐसी स्थिति आ सकती है जिसमें हर महीने EMI चुकाना मुश्किल हो सकता है और इस स्थिति में आप लोन डिफॉल्टर बन सकते हैं। हालांकि, लोन डिफॉल्टर को सबकुछ ठीक करने के कई मौके दिए जाते हैं। इसके बाद भी अगर कर्जदार संभल नहीं पाता है तो बैंक प्रॉपर्टी की नीलामी की ओर कदम बढ़ाता है। जानिए कब आपको लोन डिफॉल्टर कहा जाता है, नीलामी की नौबत कब आती है और उस स्थिति में आपके पास क्या अधिकार होते हैं।

जानिए लोन डिफॉल्ट होने के बाद बैंक क्या करता है?
एसबीआई के मुताबिक, अगर आप लोन की दो EMI नहीं चुकाते हैं तो बैंक सबसे पहले आपको रिमाइंडर भेजता है। यह बैंक की ओर से कर्जदार को भेजा गया एक दोस्ताना रिमाइंडर होता है। इस बीच कर्जदार को बैंक के साथ बैठकर जल्दी से जल्दी समस्या का समाधान कर लेना चाहिए।अगर 3 किस्तें छूट जाती हैं तो बैंक लोन को एनपीए मान लेता है। बैंक के रिमाइंडर के बावजूद अगर ग्राहक समाधान के लिए कोई प्रयास नहीं करता और लगातार तीसरी किस्त भी चूक जाती है तो बैंक लोन अकाउंट को एनपीए मान लेता है और कर्जदार को डिफॉल्टर घोषित कर देता है। एसबीआई के मुताबिक, जब आप डिफॉल्ट करते हैं।

लोन के एनपीए होने के बाद भी डिफॉल्टर को मौका मिलता है
लोन के एनपीए होने के बाद बैंक होम लोन डिफॉल्टर को कानूनी कार्रवाई का नोटिस देता है और फिर कर्जदार को छूटी हुई ईएमआई चुकाने के लिए 2 महीने तक का समय देता है। यह बैंक की ओर से कर्जदार को सबकुछ ठीक करने का मौका दिया जाता है। अगर इस दौरान भी बैंक को कानूनी नोटिस का संतोषजनक जवाब नहीं मिलता तो बैंक प्रॉपर्टी की नीलामी करने की बात कहता है।

घर को नीलामी से बचाने के लिए अच्छा खासा समय दिया जाता है
लोन के एनपीए होने के बाद प्रॉपर्टी की नीलामी तक पहुंचने की प्रक्रिया में करीब 6-7 महीने का समय लगता है। इस बीच आप चाहें तो बैंक के साथ बैठकर समस्या का समाधान निकाल सकते हैं। ऐसे में घर को नीलामी में जाने से बचाने के लिए पर्याप्त समय होता है।

आखिरी विकल्प नीलामी है
बैंक की ओर से लोन लेने वाले को बार-बार मौका देने के बाद भी जब कोई समाधान नहीं निकलता है तो बैंक उसकी संपत्ति को अपने कब्जे में लेकर फिर उसकी नीलामी कर देता है। संपत्ति की नीलामी करके लोन की राशि वसूल की जाती है।

नीलामी के दौरान मिलते हैं ये अधिकार
संपत्ति की बिक्री से पहले, जिस बैंक या वित्तीय संस्थान से आपने लोन लिया है, उसे संपत्ति का उचित मूल्य बताते हुए एक नोटिस जारी करना होता है। इसमें आरक्षित मूल्य, नीलामी की तारीख और समय का भी उल्लेख करना होता है। अगर कर्जदार को लगता है कि संपत्ति की कीमत कम रखी गई है तो वह इस नीलामी को चुनौती दे सकता है। इसके अलावा, अगर आप संपत्ति की नीलामी को रोकने में असमर्थ हैं तो नीलामी प्रक्रिया पर नज़र बनाए रखें क्योंकि लोन की वसूली के बाद बची हुई अतिरिक्त राशि पाने का अधिकार आपके पास है। बैंक को बची हुई राशि लेनदार को वापस करनी होती है।