Do Patti Review: दो बहनों की दुश्मनी की कहानी में नहीं दिखा दम, Netflix पर देखने से पहले पढ़ ले रिव्यु कही बाद में ना हो पछतावा

Do Patti Review: दो बहनों की दुश्मनी की कहानी में नहीं दिखा दम, Netflix पर देखने से पहले पढ़ ले रिव्यु कही बाद में ना हो पछतावा
 
Do Patti Review: दो बहनों की दुश्मनी की कहानी में नहीं दिखा दम, Netflix पर देखने से पहले पढ़ ले रिव्यु कही बाद में ना हो पछतावा

मनोरंजन न्यूज़ डेस्क -  आप जानते ही हैं कि ‘मिमी’ के बाद जब कृति को नेशनल अवॉर्ड मिला तो उन्हें लगा कि उन्हें एक और इंटेंस फिल्म बनानी चाहिए। उनके दिमाग में एक आइडिया आया। कृति ने यह आइडिया कनिका ढिल्लन को बताया, कनिका के पास पहले से ही दो बहनों की प्रतिद्वंद्विता की कहानी थी, उसमें कृति के आइडिया को मिक्स किया गया और एक नई कहानी तैयार हुई- ‘दो पत्ती’। अब आप कहेंगे कि हम रिव्यू में ‘दो पत्ती’ की असली कहानी क्यों बता रहे हैं? वो इसलिए क्योंकि अच्छी मिक्स सब्जी बनाने के लिए जरूरी नहीं है कि दो अलग-अलग सब्जियों को एक साथ मिलाया जाए। क्योंकि करेला और कद्दू को अलग-अलग पकाना चाहिए।

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‘दो पत्ती’ की कहानी

अचानक हिमाचल के शांत पहाड़ी शहर देवीपुर के आसमान में हलचल होती है। पैराग्लाइडिंग कर रही सौम्या को उसका पति हवा में उछाल रहा है। पुलिस अधिकारी विद्या ज्योति वहां पहुंचती है, जो सौम्या के कहने पर उसे हत्या के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है, जब वह ध्रुव सूद को मारने की कोशिश करती है। फिर कहानी का फ्लैशबैक शुरू होता है कि सौम्या और शैली जुड़वाँ लेकिन अनाथ बहनें हैं, जिनमें बचपन से ही प्रतिद्वंद्विता है। दोनों को एक-दूसरे से ज़्यादा एक-दूसरे की चीज़ें और अटेंशन चाहिए।

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कैसा है सौम्या और शैली का किरदार

अब बात करते हैं दोनों बहनों के किरदार की। सौम्या थोड़ी डरपोक है। जबकि शैली थोड़ी ज़्यादा बेपरवाह है। जुड़वाँ बहनों के बीच झगड़े की वजह से शैली को बचपन से ही घर से दूर हॉस्टल भेज दिया गया और सौम्या डरी-सहमी घर पर ही रहती थी। कहानी में रोमांस आता है- ध्रुव सूद के साथ, जिससे सौम्या प्यार करती है। लेकिन प्रेम कहानी परवान चढ़ने से पहले ही कहानी में शैली की एंट्री हो जाती है और बहनों के बीच का झगड़ा अब ध्रुव को पाने की लड़ाई में बदल जाता है। लेकिन ध्रुव और सौम्या की शादी हो जाती है, शैली का दिल टूट जाता है। शैली सौम्या की ज़िंदगी में ज़हर घोलने की कोशिश करती रहती है और ध्रुव शादी के बाद सौम्या पर घरेलू हिंसा करने लगता है।

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जुड़वाँ बहनों के बीच प्रतिद्वंद्विता
कहानी वहीं पहुँचती है जहाँ से शुरू हुई थी, यानी सौम्या को मारने की कोशिश और पुलिस अधिकारी विद्या की जाँच। इसी कहानी से वो कड़ियाँ मिलती और निकलती हैं जो लेखिका कनिका ढिल्लन ने कृति सनोन से आइडिया लेकर कहानी में डाली हैं। यानी घरेलू हिंसा के खिलाफ़ महिलाओं की आवाज़। कहानी का पहला भाग और दूसरा भाग यानी दो जुड़वाँ बहनों के बीच प्रतिद्वंद्विता और घरेलू हिंसा के खिलाफ़ मुहिम, ये पटरियाँ रेलवे की पटरियों की तरह हैं जो कहानी में बिल्कुल भी नहीं जुड़तीं। लेकिन कनिका ढिल्लन ने इन दोनों पटरियों को अपनी निर्माता और आइडिया जनरेटर कृति सनोन के आइडिया से जोड़ा और ऐसा हादसा हुआ जो वर्णन से परे है। इसीलिए कहा जाता है कि बड़ों की बात माननी चाहिए-जो काम करना चाहिए, वो करना चाहिए। कृति एक अच्छी एक्टर हैं, नेशनल अवॉर्ड के बाद वो लेखिका बन गई हैं और 'मनमर्जियाँ' और 'हसीन दिलरुबा' के बाद कनिका खुद को शर्लक होम्स की तरह ट्रीट करने लगी हैं। कनिका ने 'हसीन दिलरुबा' और 'दो पत्ती' में भी कहानियों को बेवजह उलझाकर यही गलती की।

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दो पत्ती शशांक चतुर्वेदी के निर्देशन में बनी थी
अब निर्देशक शशांक चतुर्वेदी दो ऐसी ही तेज दिमाग वाली महिलाओं के बीच उलझ गए और अपनी पहली ही फिल्म में उन्होंने करेले और कद्दू की वो मिक्स सब्जी बना दी जिसका जिक्र हम सबसे पहले कर चुके हैं। घरेलू हिंसा पर हाल ही में आई सबसे अच्छी फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा की 'थप्पड़' है, जिसमें तापसी पन्नू ने कमाल का काम किया है। 'थप्पड़' ने यह बता दिया कि घरेलू हिंसा के खिलाफ एक प्रभावी कहानी सिर्फ एक 'थप्पड़' के इर्द-गिर्द गढ़ी जा सकती है। इसमें इतनी हिंसा दिखाने की जरूरत नहीं है, जितनी इस फिल्म में शहीर शेख और कृति सनोन के बीच दिखाई गई है। और यह बहुत ज्यादा है, परेशान करने वाला है।

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कहां देख सकते हैं 'दो पत्ती'
लोकेशन बढ़िया है, सिनेमेटोग्राफी कमाल की है, गाने भी अच्छे हैं.. बस कहानी ने मामला बिगाड़ दिया है। सौम्या और शैली के रोल में कृति का काम शानदार है। कृति सनोन कमाल की अदाकारा हैं, इसमें कोई शक नहीं है। पुलिस ऑफिसर - विद्या की भूमिका में काजोल का किरदार बहुत ही अजीब तरीके से लिखा गया था और यह उलझन उनके अभिनय में भी झलकती है। शाहीर शेख रोमांटिक हिस्सों में अच्छे लगते हैं, लेकिन जब हिंसा दिखाई जाती है और उसमें कुछ घटित होता है, तो ऐसा लगता है कि बहुत ज़्यादा ड्रामा है। तन्वी आज़मी एक बेहतरीन अदाकारा हैं, और उन्होंने यहाँ भी अच्छा काम किया है।