मेहरानगढ़ त्रासदी के 16 साल, इस दर्द का कोई इलाज नहीं, हम इसे याद करके चुपचाप

मेहरानगढ़ त्रासदी के 16 साल, इस दर्द का कोई इलाज नहीं, हम इसे याद करके चुपचाप
 
मेहरानगढ़ त्रासदी के 16 साल, इस दर्द का कोई इलाज नहीं, हम इसे याद करके चुपचाप

जोधपुर न्यूज़ डेस्क, मेहरानगढ़ दुखान्तिका के सोमवार को 16 साल पूरे हो गए हैं। आज भी लोगों को 30 सितम्बर 2008 के दिन शारदीय नवरात्रि के उस दिन की यादें सताती हैं। मेहरानगढ़ के चामुण्डा मंदिर परिसर में भोर के समय मचे शोर, हाहाकार और रुदन की सिसकियां उन माताओं-बहनों और परिवार के सदस्यों के जेहन में गूंजती हैं। दुखान्तिका की जांच के लिए 2 अक्टूबर 2008 को राज्य सरकार ने न्यायिक जांच के लिए चौपड़ा आयोग का गठन किया था। आयोग अध्यक्ष जस्टिस जसराज चौपड़ा ने दुखान्तिका के ढाई साल बाद 11 मई 2011 को अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन सरकार को सौंप दी थी। तब से यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो पाई है। पत्रिका ने बात की कुछ परिवारों से।

भर आया मां-बाप का गला

बेटे ज्ञानचंद का नाम लेते ही 69 वर्षीय मानाराम कड़ेला का गला भर आया। वे आज भी अपने 24 साल के पुत्र ज्ञानचंद को याद करके दिल पर पत्थर रख लेते हैं। पिछले 15 साल में हर बार 30 सितंबर आते ही हमारे चेहरे मुरझा जाते है। मां ओमादेवी को भी अब कम दिखाई देता है। उन्हें तो बेटे के गम ने दमा की बीमारी तक दे दी। वे रोती हुई बताती हैं कि उसका टीचर के लिए चयन हुआ था और वो मां चामुंडा के शीश नवाने गया था, लेकिन वापस नहीं आया।

अब तो मरने के साथ ही जाएगी बेटे की याद

जोधपुर के मेहरानगढ़ हादसे में अपने 18 वर्षीय बेटे कमलेश को गंवाने वाले उसके 60 वर्षीय पिता सुरेश चावड़ा बताते हैं कि अब तो हम जब जाएंगे तब ही बेटे की याद साथ जाएगी। जब 30 सितंबर का दिन आता है तो हम पति-पत्नी सिवाए इस दिन को कोसने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाते। हमारा बेटा पढ़ाई में अच्छा था। उस साल उसे दसवीं का इम्तिहान देना था। वो पढ़ाई के साथ ही काम भी करता था। अब तो उसकी यादें ही हमारे दिमाग में रह गई हैं। मां तो उसकी उसे याद करके कई बार चुपके-चुपके रोती है। बस इससे ज्यादा कुछ नहीं बता पाऊंगा।

पिता के गम में मां को हुई दिमागी तकलीफ

16 साल पहले हादसे में अपने पिता कैलाश गहलोत को खोने वाले 6 वर्षीय अशोक गहलोत अब 22 साल के हो गए हैं। वे बताते है कि हादसे में पिता की मृत्यु के बाद मां को दिमागी तकलीफ हो गई। जो अभी तक उसी तकलीफ से ग्रसित हैं। अशोक बताते हैं कि उन्हें उनके दादा ने पाला। पिताजी की जब मृत्यु हुई तो उसकी एक छोटी बहन भी थी और पिता की मृत्यु के 25 दिन बाद एक बहन और हुई। हम तीनों को हमारे दादा ने ही पाला।