Ajmer आनासागर झील में फैल रही जलकुंभी, समस्या का कोई समाधान नहीं

Ajmer आनासागर झील में फैल रही जलकुंभी, समस्या का कोई समाधान नहीं
 
Ajmer आनासागर झील में फैल रही जलकुंभी, समस्या का कोई समाधान नहीं

अजमेर न्यूज़ डेस्क, अजमेर में आनासागर झील के सौन्दर्यकरण के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन यहां फैल रही जलकुम्भी इन सब कार्यों पर पानी फेर रही है। आनासागर झील के किनारे व चहुंओर जलकुम्भी से अटे पडे़ है। इस जलकुम्भी को निकालने के लिए नगर निगम के पास डिविडिंग मशीन भी है, लेकिन इस समस्या से कोई निजात नहीं मिल रही। वहीं इसके कारण आनासागर के जलीय जीवों का भी जीना दुश्वार हो रहा है। इस परेशानी का प्रशासन स्थाई हल नहीं ढूंढ पाया है।

अजमेर के बीचों बीच आनासागर के सौन्दर्यकरण के लिए चारों और पाथ वे और चौपाटी बनाई गई है। यहां पेड़ पौधे भी लगाकर हरियाली विकसित की गई। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत करोड़ों खर्च किए ताकि पयर्टकों को आकर्षित किया जा सके। लेकिन मानव निर्मित आनासागर झील में जलकुंभी की समस्या से निजात नहीं मिल पाया है। आनासागर व बांडी नदी इस जलकुम्भी से अटी पड़ी है। हरे बडे़ बडे़ पत्तों का यह जाल अब ज्यादा फैल रहा है। किनारों पर दूर दूर तक यह जलकुम्भी की परत देखी जा सकती है। नगर निगम जलकुम्भी निकालने के दावे करती है लेकिन इस जलकुम्भी की स्थाई समस्या का समाधान सालों से नहीं हो पाया है।

पानी में ऑक्सीजन की मात्रा खत्म हो जाती है

पर्यावरणविदों का मानना है कि जलकुंभी किसी भी झील या तालाब में हो तो वह थोड़े ही समय में फैलने लगती है। राजस्थान में सबसे पहले भरतपुर एवं उदयपुर में देखी गई थी। जलकुंभी पानी में फैलने लगती है और इसके नीचे पौधे होते हैं जो गहरे पानी में जाल के रूप में फैलने लगते हैं। सूर्य की रोशनी अंदर तक नहीं जा पाती है और यह गलने एवं सड़ने लगते हैं। जिसकी वजह से नाइट्रोजन एवं फासफोरस की मात्रा ज्यादा होने लगती है। इससे दूसरे प्लांट बढ़ने लगते हैं, साझोपीसी सहवाल बढ़ने लगते हैं। कई ऐसे सहवाल होते हैं जो जहरीले टोकसी सबस्टेंस फैलाते हैं। पानी में ऑक्सीजन की मात्रा समाप्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में मछलियां मरने लगती हैं। यदि कोई पक्षी यहां आकर पानी पीता है तो इसके दुष्प्रभाव भी होंगे।

सजावटी पौधे के रूप में लाए, आज समस्या

बताया जाता है कि जल कुम्भी सबसे पहले भारत में बंगाल में अपने खुबसूरत फूलों और पत्तियों के आकार के कारण लाया गया था। भारत में इसे बंगाल का आतंक भी कहा जाता है। यह पौधा रुके हुए जल मे सर्वाधिक वृध्दि करता है जो जल से ऑक्सीजन खीच लेता है। ​​ जलकुंभी को कॉमन वाटर हायसिंथ (नीला शैतान) कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम (इकॉरनीय प्रेसिपस) भी है। मूलत: यह दक्षिणी अमरीका की अमेजन नदी के किनारे पाया जाता था। यह देश के विभिन्न राज्यों, शहरों और गांवों तक पैर पसार चुका है।