Ajmer के गंदे पानी से आनासागर में बढ़ी जलकुंभी, प्रवासी पक्षियों ने आना छोड़ा

Ajmer के गंदे पानी से आनासागर में बढ़ी जलकुंभी, प्रवासी पक्षियों ने आना छोड़ा
 
Ajmer के गंदे पानी से आनासागर में बढ़ी जलकुंभी, प्रवासी पक्षियों ने आना छोड़ा

अजमेर न्यूज़ डेस्क, अजमेर की आनासागर में फैलने वाली जलकुम्भी का सबसे बड़ा कारण आनासागर में डाले जाने वाला नाले-नालियों का गंदा पानी है। भले ही प्रशासन इसे सीवरेज प्लान्ट में फिल्टर करने का दावा करें, लेकिन हकीकत ये है कि यहां डाले जाने वाले पानी के फिल्टर होने की कोई गारंटी नहीं है।सोफिया कॉलेज के ज्योग्राफी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. मोनिका कनन की ओर से किए गए रिसर्च में यह बात सामने आई है। जनवरी से मई तक करीब पांच माह तक हर माह पानी की जांच व वायु दाब, तापमान व आद्रता का एनालिसेस कर यह रिजल्ट निकाला। रिसर्च में इसके कई कारण सामने आए और उनमें से मुख्य कारण था आनासागर झील के पानी में टॉक्सिन वेस्ट का होना।

कनन ने बताया कि कहीं न कहीं नाले नालियों के पानी का फिल्टर सुचारू रूप से नहीं हो पाया और इससे जलकुम्भी को फैलने में मदद मिली। उन्होंने इसके अलावा कृषि कार्य में होने वाले रासायनिक खाद व कीटनाशकों का उपयोग व आस पास के क्षेत्र से डाला जाने वाला वेस्ट भी कारण है। उन्होंने यह भी बताया कि यह जलकुम्भी पहली बार पौधों के एक्सीडंटल तरीके से आई और यहां अनूकूल परिस्थिति मिलने के कारण फलने फूलने लगी।इस शोध को यूजीसी केयर लिस्टेड जर्नल डेक्कन जियोग्राफर के लिए चुना गया है जो प्रकाशन के लिए देश की राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त और प्रतिष्ठित पत्रिका है। इस शोध में IMD, न्यू दिल्ली के तापमान वायुदाब व आद्रता के डाटा को एकत्रित किया गया। जलकुंभी के विस्तार और प्रसार के क्षेत्र की गणना गूगल अर्थ प्रो और एआरसीजीआईएस का उपयोग करके की गई।

इस कारण फैली जलकुंभी

पानी में पीएच का बेसिक लेवल 4 से 8 के बीच होना चाहिए, जबकि आनासागर के पानी का पीएसच लेवल 8 से ज्यादा है। पानी की टबिर्बिटी एक से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि आनासागर के पानी की टबिर्बिटी आठ आई है, जो पानी के मटमेला व गंदा होने के कारण है। लवणता 1286 मिलिग्राम प्रति लीटर, तापमान 25 से 35 के बीच और फास्फोरस 0.5 से एक के बीच है, जो जलकुम्भी के लिए उपयुक्त है।

यह हो रहे नुकसान

पानी के गंदा होने से फैल रही जलकुम्भी के कारण पानी की ऑक्सीजन मात्रा भी कम हो रही है। इससे जलीय जीवों व पादप वनस्पति को भी खतरा हो गया है। जलकुम्भी के कारण सूरज व पानी का सम्पर्क नहीं हो सकता और ऐसे में वाष्पीकरण भी रूक गया। पानी में ऑक्सीजन की मात्रा 6.5 से 8 के बीच होनी चाहिए। लेकिन यहां जनवरी माह में 6, फरवरी माह में 4, मार्च माह में 4, बप्रैल माह में 4.5, मई माह में 3 ही पाई गई। यही कारण है कि यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों ने भी किनारा कर लिया।

यह है उपाय

यांत्रिक निष्कासन - झील से जलकुंभी को नियमित रूप से हटाने के लिए अजमेर नगर निगम द्वारा पहले से खरीदी गई खरपतवार हटाने वाली मशीन का उपयोग करें। उन क्षेत्रों को संबोधित करने के लिए मैन्युअल हटाने के लिए स्थानीय श्रमिकों को काम पर रखें, जहां मशीनें नहीं पहुंच सकती है। इसकी ग्रोथ 7.26 प्रतिशत प्रतिदिन है और स्पीड इससे तेज हो।
जैविक नियंत्रण - जलकुंभी को खाने वाले वीविल (नियोचेटिना ईचोर्निया और नियोचेटिना ब्रूची) जैसे प्राकृतिक शिकारियों या विशिष्ट कवक को इसमें डाले, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाए बिना इसकी वृद्धि कम हो।
रासायनिक उपचार - जलकुंभी को मारने के लिए नियंत्रित परिस्थितियों में पर्यावरण के अनुकूल शाकनाशियों (जैसे ग्लाइफोसेट) का उपयोग करें। अन्य जलीय जीवन को नुकसान पहुंचाने से बचने के लिए इसे सावधानी से लागू किया जाना चाहिए।
अन्य- पोषक तत्वों के प्रवाह की जाँच करें: पोषक तत्वों से भरपूर अपशिष्ट जल और कृषि अपवाह को झील में कम करें। वेटलैंड बफर्स का निर्माण करे। झील के चारों ओर कृत्रिम वेटलैंड बनाएँ। लोगों को जलकुंभी से होने वाले पारिस्थितिक नुकसान के बारे में बताएं और सफाई अभियान में भागीदारी को प्रोत्साहित करें।