राजस्थान की वो कामधेनु जिसे द्रौपती के गुस्से ने बनाया श्रापित, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जाने युगों पुराना सच
राजस्थान न्यूज़ डेस्क, कामधेनु का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है जिसमें दैवीय शक्तियाँ थी और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी यह कामधेनु जिसके पास होती थी उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। उसका दूध अमृत के समान था। जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, भक्तों में नारद, सभी पुरियों में कैलाश, सम्पूर्ण क्षेत्रों में 'केदार क्षेत्र' श्रेष्ठ है, वैसे ही गऊओं में कामधेनु सर्वश्रेष्ठ है। इसी कामधेनु की पुत्री नंदिनी थी।
नंदिनी महर्षि वसिष्ठ की गाय थी, जो कामधेनु सुरभि की पुत्री थी। कहा जाता है कि नंदिनी का दुग्धपान करने वाला अमर हो जाता था।
दिलीप अंशुमान के पुत्र और अयोध्या के राजा थे। दिलीप बड़े पराक्रमी थे यहाँ तक के देवराज इन्द्र की भी सहायता करने जाते थे। इन्होंने देवासुर संग्राम में भाग लिया था। वहाँ से विजयोल्लास से भरे राजा लौट रहे थे। मार्ग में कामधेनु खड़ी मिली लेकिन उसे दिलीप ने प्रणाम नहीं किया तब कामधेनु ने श्राप दे दिया कि तुम पुत्रहीन रहोगे। यदि मेरी सन्तान तुम्हारे ऊपर कृपा कर देगी तो भले ही सन्तान हो सकती है। श्री वसिष्ठ जी की कृपा से उन्होंने 'नन्दिनी गौ' की सेवा करके पुत्र श्री रघु जी को प्राप्त किया।
द्यो नामक वसु ने नंदिनी को चुराने का प्रयास किया था, जिस कारण उसने महर्षि वसिष्ठ के शाप से द्यो ने भीष्म का जन्म ग्रहण किया था।
एक राजा थे नाम था कौशिक एक बार वो वन में आखेट करने गए और फिर मार्ग भटक गए, कई दिनों तक मार्ग न सुझा तो वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में उन्हें शरण मिली। वशिष्ठ ऋषि ने राजा और उनके सैनिको का स्वागत सत्कार किया जो की राजमहल में राजा तक की नहीं होता। जब राजा ने ऋषि से इसका राज पूछा तो उन्होंने नंदिनी नाम की गाय का उल्लेख किया जो की कामधेनु की संतान थी जो दूध की जगह हर तरह के भोजन देती थी। राजा का में बिगड़ गया और उन्होंने वशिष्ठ से उसे जबरन पाना चाहा और जब सैनिको ने गाय पर हमला बोला तो ऋषि ने अपने तेज से उन्हें समाप्त कर दिया और राजा को भी निर्बल कर दिया। इस पर क्रोध और तिरस्कार में लिप्त राजा ने तपस्या शुरू कर दी जिससे वो वशिष्ठ से भी श्रेष्ठ बन सके, तब उनका नाम विश्वामित्र पड़ा और वो राजऋषि और ब्रह्मऋषि बने। तप से डर के इंद्र ने अपनी अप्सरा मेनका को ऋषि का तप भंग करने भेजा और वो सफल भी हुई, उससे शकुन्तला नाम की पुत्री हुई जिसे विश्वामित्र ने नही स्वीकारा । आगे चल के उसी शकुंतला का पुत्र भरत पृथ्वी के राजा बने जिस से आज हमारे देश का नाम है।