Pratapgarh कांठल व मालवा में पर्यावरण के पर्याय बने श्याम सिंह, जागरूकता का दे रहे संदेश

Pratapgarh कांठल व मालवा में पर्यावरण के पर्याय बने श्याम सिंह, जागरूकता का दे रहे संदेश
 
Pratapgarh कांठल व मालवा में पर्यावरण के पर्याय बने श्याम सिंह, जागरूकता का दे रहे संदेश
प्रतापगढ़ न्यूज़ डेस्क, प्रतापगढ़ जिले के मध्यप्रदेश के मंदसौर सीमा पर बसे छोटे गांव कंथार के पूर्व शिक्षक श्यामसिंह चूंडावत आज कांठल और मालवा क्षेत्र में पर्यावरण के नाम से पर्याय बने हुए हैं। प्रतापगढ़ जिले और निकटवर्ती मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में शिक्षक श्यामसिंह चूंडावत को लोग पर्यावरण प्रेमी के नाम से जानते है। शिक्षक श्यामसिंह गत चार दशक से पौधे लगाने और जन जागृति के लिए प्रयास कर रहे है। इसी का नतीजा यह है कि उनके द्वारा लगाए गए पौधे आज विशाल पेड़ बन चुके है। इतना ही नहीं इन पेड़ों के बीजों से फिर से पौधे तैयार कर वितरण करने के साथ रोपने में भी लग हुए है।प्रतापगढ़ जिले के मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित कुणी ग्राम पंचायत का कंथार गांव के शिक्षक श्यामसिंह चूण्डावत गत करीब 42 वर्ष से पर्यावरण संरक्षण में जुटे हुए है। शिक्षक चूण्डावत ने ना केवल पेड़ों को काटने से बचाया, नए पौधे लगाए और ग्रामीणों को अधिक से अधिक पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

तीन दशक पहले लगाए थे विभिन्न प्रजातियों के पौधे अब बन गए विशाल पेड़

तीन दशक से अधिक समय पहले लगाए गए पौधे आज विशाल पेड़ बन गए हैं। उन्होंने गांव के मध्य में पीपल का पौधा लगाया था। जो आज पेड़ गया है। गांव के बाहर बरगद भी काफी घना हो गया है, जबकि नीम के तो कई पेड़ हैं, जो उनके द्वारा लगाए गए हैं। विशेषकर नीम, पीपल, बरगद, शीशम, गुलमोहर, कचनार, मोरछल, करंज, खिरनी व अन्य किस्मों के पेड़ बन चुके हैं।

बीज एकत्रित कर देते है पौध शालाओं को

चूंडावत ने गत तीन वर्षों से एक और अभियान चलाया हुआ है। जिसमें वे पेड़ों के बीजों को एकत्रित कर रहे है। इन बीजों से अपने यहां नर्सरी तैयार करते है। इन पौधों को आवश्यकता वाले लोगों को नि:शुल्क वितरण करते है। इसके अलावा नर्सरियां तैयार करने वालों को भी नि:शुल्क उपलब्ध कराते है। उन्होंने गत वर्षों में संकल्प लिया था। वे रोजाना एक पौधा लगाएंगे। इसके लिए या तो खुद ही खाली स्थान पर पौधा लगाएंगे या ग्रामीणों को देंगे, जो उनकी देखभाल में पौधा रोपते है।

मूक पशु-पक्षी बने प्रेरणास्रोत

शिक्षक चूण्डावत कृषि से जुड़े हुए हैं। तीन दशक पहले पक्षियों व पशुओं को गर्मी में इधर-उधर भटकते देखते हुए उनके मन में विचार आया कि क्यों न वे अधिक से अधिक पौधे लगाएं, जिससे मूक पशु-पक्षियों के लिए आश्रय स्थल मिले। इसके बाद उन्हाेंने पौधे लगाने और संरक्षण का बीड़ा उठाया। वे पौधे लगाने के बाद सुरक्षा के लिए कांटे लगाना और रोजाना पानी देना शुरू किया।