Sirohi आजादी के 76 साल बाद भी अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं शेरगांव के निवासी

Sirohi आजादी के 76 साल बाद भी अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं शेरगांव के निवासी
 
Sirohi आजादी के 76 साल बाद भी अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं शेरगांव के निवासी
सिरोही न्यूज़ डेस्क, सिरोही अरावली पर्वत श्रृंखला के सर्वाधिक ऊंचाई पर बसा है शेरगांव, जो कि पर्यटन स्थल माउंट आबू से करीब 36 किलोमीटर दूर है। विडम्बना है कि आजादी के 76 वर्ष बाद भी दुर्गम पहाड़ियों के मध्य बसे शेरगांव के बाशिन्दे बिजली, पेयजल, चिकित्सा, शिक्षा आदि मूलभूत सुविधाओं से महरूम है। यहां तक पहुंचने के लिए रास्ता तक नहीं है। माउंट आबू से 16 किमी का सड़क मार्ग तय कर गुरूशिखर पहुंचने के बाद उतरज से होते हुए करीब 20 किमी. दुर्गम घाटियों के मध्य संकरी पगंडडियों व उबड़-खाबड़ पथरीले रास्ते को पैदल पार शेरगांव पहुंचना पड़ता है।

आज के वैज्ञानिक प्रगति के दौर में भी शेरगांव के निवासी किसी दसवीं-बारहवीं सदी के काल की तरह से जीने को विवश हैं। यहां तक कि किसी व्यक्ति के बीमार होने पर उसे खाट में डालकर 8-10 लोगों को उठाकर लाना पड़ता है, जो कि बीहड़ जंगल होने से किसी खतरे से कम नहीं है।यहां के लोगों का कहना है कि उनकी कई पीढियां चुनाव में प्रत्याशियों को वोट देती आ रही है, लेकिन आज तक किसी ने सुध नहीं ली। सड़क, शिक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन आदि विकास उनके लिए किसी दिवास्वप्न से कम नहीं हैं।

ऐसे बसा था शेर गांव

जानकारी के अनुसार पूर्व में घने जंगलों, पठारों व चट्टानों को काटकर वर्षों की लंबी मेहनत के बाद गांव को देश व दुनिया से जोड़ने के लिए आवागमन के लिए दुर्गम पगडंडी मार्ग तैयार किया था। यह कब बना इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं मिलता है, लेकिन बताया जाता है कि आबूरोड के समीप चंद्रावती नगरी के उजड़ने से शेर सिंह नाम के एक व्यक्ति की ओर से शेरगांव बसाया था। संभवत: इसी दौरान मार्ग बना होगा। कालांतर में मुगलों से लोहा लेने के बाद महाराणा प्रताप ने इसी मार्ग से शेरगांव में जाकर अज्ञातवास बिताया था।

वोट देते आ रहे, आज तक गांव में नहीं देखा प्रत्याशी

आजादी के बाद से यहां के बाशिन्दे चुनावों में मतदान करते आ रहे हैं। लोकसभा व विधानसभा चुनावों के लिए पहले दो दिन व एक रात का समय निकालकर ग्राम पंचायत मुख्यालय ओरिया पर मतदान के लिए आना पड़ता था। गत वर्ष शेरगांव में मतदान केंद्र स्थापित होने से समय व श्रम की बचत हुई। जिससे गांव के बाशिन्दों को राहत मिली। लेकिन उनको आज भी इस बात का मलाल है कि आजादी के बाद से पीढ़ी दर पीढ़ी वोट देते आ रहे हैं, फिर भी जीत के बाद जनप्रतिनिधि तो दूर आज तक चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी गांव में नहीं पहुंचे। युवा वर्ग को छोड दें तो यहां के कई बुजुर्गों ने तो अपने जीवनकाल में रेल तक नहीं देखी। गांव में कुछ लोग ऐसे भी बताए जाते हैं, जो रेल में बैठे बिना ही जिंदगी से रुखसत हो गए।

दिवास्वप्न से कम नहीं आधुनिक सुविधाएं

सड़क, शिक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन, दूरदर्शन, बिजली, रोजगार, अन्य सुविधाएं प्राप्त करना शेरगांव के बाशिन्दों के लिए अभी तक किसी दिवास्वप्न से कम नहीं हैं। इस बार गांव में पोलिंग बूथ स्थापित होने से गांव में सड़क व बिजली पहुंचाने व अन्य सुविधाएं मुहैया होने की अरास जगी है। अब देखना होगा कि कब तक उनकी उम्मीदें पूरी हो पाती है।