राजस्थान से सामने आई टॉयलेट एक शर्म कथा, 2.24 लाख महिलाकर्मियों के हिस्से सिर्फ संकोच
जयपुर न्यूज़ डेस्क , घर-घर टॉयलेट का जबरदस्त अभियान चल रहा है, लेकिन प्रदेश में अधिकतर दफ्तरों-थानों-स्कूलों में कामकाजी महिलाएं टॉयलेट की कमी या फिर अव्यवस्थाओं से शर्मसार हो रहीं हैं। देश-दुनिया के कई अध्ययन कहते हैं कि घरेलू या कामकाजी महिलाएं जब भी घर से बाहर निकलती हैं तो पानी नहीं पीतीं। उन्हें डर रहता है कि अगर लघुशंका आ गई तो मुश्किल होगी… कहां जाएंगे? यह बात सिर्फ सर्वे की नहीं हमारे आपके घर की भी है। मेडिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित एक खबर में साफ है कि बच्चे पैदा करने के बाद या फिर बढ़ती उम्र में महिलाओं को लघुशंका ज्यादा आती है और उन्हें रोकने में भी दिक्कत होती है। बात अगर प्रदेश की करें तो यहां करीब 56 हजार सरकारी कार्यालयों में 10 लाख अधिकारी-कर्मचारी हैं। इनमें 2.24 लाख महिलाएं हैं। 15 साल में महिलाकर्मियों की संख्या करीब 50 हजार बढ़ी है और आने वाले दस साल में 40 फीसदी सरकारी महिलाकर्मी और बढेंगी।
इसके बावजूद सरकारी दफ्तरों में शौचालयों की बेहतर तो दूर सामान्य सुविधा तक नहीं है। राजधानी जयपुर में सचिवालय की बात करें तो यहां महिलाएं टॉयलेट के लिए कतार में खड़ी होती हैं। राज्य के 70 फीसदी थाने ऐसे हैं जहां महिलाओं के लिए टॉयलेट ही नहीं हैं। संकोच के साथ पुरुषों के टॉयलेट या कॉमन टॉयलेट में जाना उनकी मजबूरी है। सरकारी स्कूलों की बात करें तो वहां भी यही स्थिति है। मुद्दे की बात यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें करोड़ों रुपए टॉयलेट अभियान में खर्च कर रही हैं लेकिन महिलाएं संकोच में बीमार हो रही हैं।
सरकारी दफ्तरों के ये हाल
जयपुर शिक्षा संकुल : 500 से अधिक महिला अधिकारी-कर्मचारी हैं। महिला टॉयलेट की सफाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। एक महिला अधिकारी ने कहा कि शौचालय गंदे रहने से संक्रमण का खतरा रहता है। यहां रेस्ट रूम, क्रेच, कॉमन रूम की सुविधा नहीं है।
बीकानेर शिक्षा निदेशालय : 125 महिला अधिकारी-कर्मचारी हैं। टॉयलेट की समस्या, महिला, रेस्ट रूम नहीं।
झालावाड़ : पांच हजार महिला कर्मचारी। ज्यादातर जगह कॉमन रूम और रेस्ट रूम नहीं।
कोटा : 180 अधिकारी और 4500 महिला कर्मचारी हैं। रेस्ट रूम, क्रेच व कॉमन रूम नहीं हैं। इनके अलावा जिले में करीब 200 विद्यालयों व कार्यालयों में शौचालय भी बदहाल हैं।
सीकर जिला कलक्ट्रेट : 100 अधिकारी व 20 कर्मचारी महिलाएं हैं। कॉमन रूम, रेस्टरूम नहीं हैं। क्रेच फिलहाल बंद।
जोधपुर नगर निगम : नगर निगम उत्तर- मेयर तथा 14 अन्य अधिकारी-कर्मचारी महिलाएं हैं। दक्षिण में मेयर तथा 17 अधिकारी-कर्मचारी महिलाएं हैं। यहां क्रेच, रेस्ट रूम, कॉमन रूम नहीं।
नागौर जिला कलक्ट्रेट : डेढ दर्जन अधिकारी व 123 महिला कर्मचारी हैं। शौचालय पर्याप्त नहीं। रेस्ट रूम व क्रेच भी नहीं।
जयपुर जिला न्यायालय परिसर : बहुमंजिला इमारत में क्रेच है, कई महीनों से बंद है।
यहां भी छलका टॉयलेट का दर्द
टॉयलेट पर चर्चा करते ही सचिवालय में कार्यरत महिला अधिकारियों का दर्द छलक उठा। कहा, जब वे फील्ड विजिट पर जाती हैं तो पानी पीने से परहेज करती हैं, डर रहता है कि लघुशंका आई तो कहां जाएंगी? स्वयं राज्य महिला आयोग अध्यक्ष रेहाना रियाज चिश्ती ने भी ऐसा अनुभव साझा किया। थानों में कई जगह स्थिति यह है कि महिला-पुरुष कर्मी दोनों के लिए कॉमन टॉयलेट है। क्रेच कुछ दफ्तरों में हैं, जो भी कई जगह बंद हैं।
महिलाओं व बालिकाओं के लिए सुविधाओं को लेकर समस्या है। कमेटी के लिए भी यह चिंता का विषय है। सीएम को ध्यान दिलाया जाएगा।पिछले दिनों शिक्षा विभाग से जुड़ी तीन महिलाओं के मामले आए। कम पानी पीने से उन्हें किडनी स्टोन और यूरिन संक्रमण था। यहीं हाल देश की 40 फीसदी महिलाओं का है।