नए कानून के तहत यदि FIR की धाराएं समझ लें तो मिल सकती है जमानत, जानें

नए कानून के तहत यदि FIR की धाराएं समझ लें तो मिल सकती है जमानत, जानें
 
नए कानून के तहत यदि FIR की धाराएं समझ लें तो मिल सकती है जमानत, जानें

जयपुर न्यूज़ डेस्क, सुप्रीम कोर्ट ने 47 साल पहले जमानत (बेल) देने के हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण अधिकार का जिक्र करते हुए राजस्थान के एक मामले में कहा था, ‘जमानत एक अधिकार है और जेल एक अपवाद”। गिरफ्तारी होने या गिरफ्तारी की आशंका होते ही सबसे पहले जमानत के लिए भागदौड़ होती है, ताकि जेल में कम से कम रहना पड़े। इसको नए आपराधिक कानूनों में भी प्रमुखता दी गई है, जिसके अंतर्गत भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 35 में 3 से 7 साल तक सजा वाले अपराधों में गिरफ्तारी से पहले नोटिस देना जरूरी है तो धारा 479 में पहले अपराध में बंद व्यक्ति को कुल सजा की एक तिहाई जेल काटने पर जमानत का अधिकार दिया है। इसी तरह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में अपराधों को जमानती व गैर जमानती दो भागों में बांटा गया है। गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत और गिरफ्तारी के बाद थाने से लेकर मजिस्ट्रेट के सामने पेशी, चार्जशीट से पहले या बाद, ट्रायल के समय और सजा होने के बाद जमानत पर रिहाई का अधिकार है। ऐसे में जमानत के लिए आवेदन करने से पहले ये जानना जरूरी है कि अपराध किन धाराओं से संबंधित है, जमानत के प्रावधान क्या हैं?

उदारता: बीएनएसएस की धारा 479(1): पहला अपराध करने पर सजा से पहले एक तिहाई जेल काटने पर जमानत, सीआरपीसी में यह नहीं था।
सख्ती: बीएनएसएस की धारा 479(2): कई अपराध दर्ज होने पर जमानत नहीं, सीआरपीसी में ऐसा नहीं था।
स्वत: रिहाई-बीएनएसएस की धारा 479(2): एक तिहाई या आधी जेल काटने पर जमानत के लिए जेल अधीक्षक जमानत प्रार्थना पत्र पेश करेगा।
अग्रिम जमानत: बीएनएसएस में नाबालिग से सामूहिक बलात्कार पर अग्रिम जमानत नहीं, सीआरपीसी में 16 साल से कम आयु की बालिका से सामूहिक बलात्कार पर ही मनाही थी।

बीएनएसएस की धारा 478 से 483 तक जमानत के प्रावधान
धारा 478: मारपीट, धमकी, लापरवाही से मौत, लापरवाही से गाड़ी चलाना जैसे मामले में जमानत।
धारा 479(1): उम्रकैद या फांसी को छोड़कर अन्य मामलों में आधी सजा अवधि पूरी होने पर जमानत।
पहला अपराध होने पर एक तिहाई से कम जेल में रहने पर भी जमानत।
धारा 479(2): एक से अधिक अपराध होने पर जमानत नहीं।
धारा 479(3): जमानत के लिए जेल अधीक्षक प्रार्थना पत्र पेश करेगा।
धारा 480 (1): उम्रकैद या फांसी की सजा की संभावना हो अथवा 3 से 7 साल तक की सजा दो या अधिक बार हो चुकी, तो जमानत नहीं। महिला, बच्चे, बीमार या अशक्त को इससे छूट। जमानत के लिए सरकार का पक्ष सुनना अनिवार्य।
धारा 480 (3): सात साल से अधिक सजा के मामले में जमानत के लिए शर्त संभव।
धारा 481(1) : अपील पर निर्णय होने तक बुलाने पर उच्च कोर्ट में हाजिरी जरूरी।
धारा482(1): अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
धारा 483 : हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय की विशेष शक्तियां
बीएनएसएस के अंतर्गत शिड्यूल: इसमें भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत अपराध और उनमें सजा व सक्षम कोर्ट का प्रावधान।