वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखें Banswara के इतिहास में एक खोया हुआ शहर और उसकी कहानी

वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखें Banswara के इतिहास में एक खोया हुआ शहर और उसकी कहानी
 
वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखें Banswara के इतिहास में एक खोया हुआ शहर और उसकी कहानी

बांसवाड़ा दर्शन डेस्क, आज जिस क्षेत्र काे समाईमाता के नाम से जाना जाता है, 15वीं सदी में जंगलाें में बसे इसी क्षेत्र काे बांसवाड़ा के नाम से जाना जाता था। बांसवाड़ा की सबसे ऊंची पहाड़ी पर आज भी परमार शासन काल में बने बासिया भील के महल के अवशेष हैं।

यह पहाड़ 1400 मीटर की ऊंचाई पर है। घाटी में घना जंगल है, जिसमें सागवान के पेड़ाें की भरमार है। इसमें पैंथर का मूवमेंट भी है। समाई उनकी पत्नी का नाम था। बांसवाड़ा में वर्ष 1530 से पहले बांसिया भील का खासा दबदबा था।

1515 में मकर संक्रांति के दिन अमरथून से निकल कर अपने भाई बहनों के साथ जंगल में पेड़ों को काटकर बांसवाड़ा बसाया था। तबसे उन्हें राजा बांसिया भील कहा जाने लगा। बांसिया भील की दो पत्नियां समाई और हंगवाई थी और समाई के नाम से समाईपुरा पहाड़ का नामकरण किया था। हंगवई के नाम से अमरथून नगर में हुनगर पहाड़ का नामकरण हुआ।

कांस्य की 4300 किलो वजनी, 15 फीट ऊंची प्रतिमा

नगर परिषद के बाहर भील राजा बांसिया कि प्रतिमा स्थापित की गई है। इसका लोकार्पण शेष है। नगर परिषद की ओर से बनाया गया यह स्मारक न सिर्फ एक भव्य प्रतिमा के कारण बल्कि फाउंटेन, कलरफुल लाइटनिंग और गार्डन से मनमोहक और एक सेल्फी पॉइंट के तौर पर उभरेगा।

ब्रॉन्ज मेटल की बनी हुई बांसिया भील की प्रतिमा 15 फीट ऊंची प्रतिमा है। जिसमें घोड़े पर तीर और कमान लिए बांसिया भील सवार है। इसका वजन 4300 किलोग्राम है। जिसकी लागत 39.40 लाख है। रोड लेवल से इसकी ऊंचाई 24 फीट है। इस प्रतिमा के लिए परिषद की और से 35 लाख की लागत से स्मारक बनाया गया है जो धौलपुर और जयपुर के लाल पत्थरों का बना है। मुख्यमंत्री से इस प्रतिमा का अनावरण कराया जाना प्रस्तावित है।

तीन बहनों के नाम से है तीन तालाब बांसिया भील की तीन बहनाें के नाम से तीन तालाब हैं। बाई के नाम से बाई तालाब, डाई के नाम से डाई तालाब और राजा के नाम से राजतालाब है। भीमकुंड में बांसिया भील की प्रतिमा का अनावरण तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत ने किया था जो लालशंकर पारगी के आग्रह पर उस समय बांसवाड़ा आए थे। बांसिया भील के पिता अमरा भील ने अरमथून नगर काे राजधानी बनाया। चरपाेटा वंश की कुलदेवी मां अंबे की मूर्ति यहीं स्थापित है।