Begusarai किनारे बसे इलाकों की वरदान अब अभिशाप बनती जा रही

Begusarai किनारे बसे इलाकों की वरदान अब अभिशाप बनती जा रही
 
Begusarai किनारे बसे इलाकों की वरदान अब अभिशाप बनती जा रही

बिहार न्यूज़ डेस्क  गंगा न सिर्फ असीम आस्था और श्रद्धा की प्रतीक रही है, बल्कि इसके किनारे बसे गांवों के जीवन से भी इसका गहरा सरोकार रहा है. एक तरह से तट जीवन का अहम हिस्सा रहे हैं. गंगा के साथ आने वाली मिट्टी खेतों को उर्वरा बनाती थी तो कछार में उगने वाले घास पशुओं का चारा और खर गरीबों के आशियाने में काम आते थे, लेकिन गाद की अधिकता और गंदगी के कारण इसका पानी नहाने लायक तक नहीं रहा और खेतों को मिट्टी भी नहीं मिल रही.

गंगा के किनारे बसा पटना के मनेर प्रखंड का महावीर टोला नदी के बदलते स्वरूप का गवाह है. इस गांव के 55 वर्षीय श्याम बिहारी राय कहते हैं- गंगा नदी हमारे गांव के लिए वरदान थी. पूरे गांव के लिए कृषि और पशुपालन ही जीविका के साधन थे. चतुरमासा के दौरान गंगा के द्वारा लाई गई उपजाऊ मिट्टी किसानों के लिए वरदान थी. किसान उस मिट्टी में जौ, गेंहू, दलहन और तेलहन के बीज छीटने के बाद सिर्फ काटने ही जाते थे. मगरपाल का इलाका होने के कारण नदी के किनारे स्वत घास उग जाते थे. पशुओं के चराने और धोने के साथ-साथ गंगा नदी का पानी पीने के काम भी आता था. लेकिन अब स्थिति उलट हो गई है. आज हम लोग कटाव के कारण पलायन को मजबूर हैं. बरसात के दौरान बार-बार बाढ़ की स्थिति बन जाती है. गंगा नदी का पानी पीने लायक तो छोड़ दीजिए नहाने के लायक भी नहीं रहा.

गंगा की यह स्थिति बक्सर के चौसा से भागलपुर के कहलगांव तक है. भोजपुर जिले के सोहरा के 70 वर्षीय दयाशंकर सिंह बताते हैं- अब गंगा वरदान कम, अभिशाप ज्यादा साबित हो रही है. प्रदूषित पानी और बाढ़-कटाव से लोगों को काफी नुकसान पहुंचा रही है. 15 से 20 वर्ष पहले गंगा के तटवर्ती इलाके के गांवों में पर्याप्त संख्या में हैंडपंप और नल का बोरिंग नहीं रहने के कारण बड़ी आबादी गंगा नदी के पानी को खाना बनाने के साथ पीने व घरेलू और धार्मिक कार्यों में उपयोग करती थी. तब इन क्षेत्रों के लोगों की दिनचर्या बन गयी थी. सुबह गंगा नदी पहुंच स्नान करने के बाद उसका पानी घर में प्रयोग करने के लिए बर्तनों में लाते थे, लेकिन आज लोगों में गंगा नदी के प्रति आस्था तो देखी जा रही है पर पानी उपयोग करने लायक नहीं रह गया है. गंगा का पानी तो अब नहाने लायक भी नहीं रहा.

बालू खनन और ईंट भट्ठा ने छीन ली दियारे की हरियाली

दानापुर. गंगा के दियारा क्षेत्र में पहले काफी हरियाली हुआ करती थी. धीरे-धीरे बालू खनन और ईंट-भट्टा का कारोबार शुरू हुआ. लिहाजा गंगा के टापू से हरियाली छिनती चली गई. गरीब पशुपालकों के लिए गंगा का टापू कभी उनके लिए वरदान साबित होता था. मवेशियों को मुफ्त में चारा मिल जाती थी. अब मवेशियों के विचरण के लिए जगह नहीं है. दियारा के पुरानी पानापुर निवासी जयपाल प्रसाद ने बताया कि पहले नदी का दोनों किनारा एक जैसा रहता था. जैसे जैसे शहर से गंगा दूर हुई, दियारा क्षेत्र कटाव होने से खतरनाक हो गया. एक दर्जन से ज्यादा गांव गंगा की गोद में समा चुके हैं.

 

 

बेगूसराय न्यूज़ डेस्क