सुकून और प्राकृतिक सुंदरता के लिए आप भी जरूर करें 100 टापुओं वाले भारत के इस शहर की सैर, वीडियो देख आंखों पर नहीं होगा यकीन

दोस्तों आपका स्वागत है आपका राजस्थान के इस नए वीडियो में, आज हम राजस्थान की एक ऐसी जगह की बात करने जा रहे हैं जिसे आदिवासियों के शहर के नाम से भी जाना जाता है। ये वो शहर है जिसकी शान है यहां का राज मंदिर जिसे सिटी पैलेस के नाम से भी जाना जाता है....
 
सुकून और प्राकृतिक सुंदरता के लिए आप भी जरूर करें 100 टापुओं वाले भारत के इस शहर की सैर, वीडियो देख आंखों पर नहीं होगा यकीन

राजस्थान न्यूज डेस्क !!! दोस्तों आपका स्वागत है आपका राजस्थान के इस नए वीडियो में, आज हम राजस्थान की एक ऐसी जगह की बात करने जा रहे हैं जिसे आदिवासियों के शहर के नाम से भी जाना जाता है। ये वो शहर है जिसकी शान है यहां का राज मंदिर जिसे सिटी पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। और इसी शहर में स्थित है राजस्थान का सबसे लंबा बांध, जिसकी कुल लम्बाई 3901 मीटर है।

हम बात कर रहे हैं राजस्थान के उस शहर की जिसे दुनिया सौ दीपों के शहर के नाम से भी जानती है। इतना ही नहीं राजस्थान के इस शहर को आदिवासियों का शहर, बागड़ प्रदेश और राजस्थान का मानसून प्रवेश द्वार जैसे नामों से भी जाना जाता है। ये मशहूर शहर भारत की सबसे शक्तिशाली शक्तिपीठ त्रिपुरा सुंदरी माता के और राजस्थान की लाइफलाइन कहलाने वाले माही बांध के लिए भी मशहूर है, तो आईये आपको लेकर चलते हैं बांसवाड़ा की यात्रा पर 

प्रकृति, मंदिर, ऐतिहासिक स्थलों, किलों और सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्वभर में फेमस बांसवाड़ा को राजस्थान के चेरापूंजी के नाम से भी जाना जाता है। इस शहर पर प्रकृति की असीम कृपा होने के चलते आपको यहां कदम-कदम पर नदी, नाले, झरने तो कहीं सुंदर पहाड़ और घाटियों के मंत्रमुग्ध करने वाले नज़ारे देखने को मिलेंगें। राजस्थान का यह प्रमुख जिला दक्षिणी भाग से गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से लगता है। इस जगह को अपना नाम बांसवाड़ा बांस के पेड़ों से मिला है जो यहां कभी काफी संख्या में हुआ करते थे। इतिहासकारों की मानें तो बांसवाड़ा का इतिहास 490 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ, जब मगध के राजा अजातशत्रु अपनी राजधानी को पहाड़ी क्षेत्र से और अधिक सामरिक रूप से सुरक्षित करना चाहते थे। इसके अलावा वर्तमान बांसवाड़ा की स्थापना भील राजा वाहिया चरपोटा द्वारा की गई थी, जिन्हें राजा बांसिया भील भी कहा जाता था। और इन्हीं के नाम पर ही इस शहर का नाम बांसवाड़ा होना भी बताया जाता है। 1530 में यह क्षेत्र बांसवाड़ा राजवाड़े के तौर पर स्थापित हुआ , जिसकी राजधानी बांसवाड़ा हुआ करता था। आजादी के बाद यानि 1948 में राजस्थान में शामिल होने से पहले यह डूंगरपुर राज्य का एक भाग हुआ करता था। दूसरी और एक पौराणिक कथा के अनुसार ये भी माना जाता है कि बांसवाड़ा की उत्पत्ति राजा पुत्रका द्वारा की गई थी। कुछ अभिलेखों और सरकारी कागजों के अनुसार बांसवाड़ा की स्थापना 510 साल पहले 14 जनवरी 1515 में मकर संक्रांति के दिन राजा बांसिया भील ने की थी। 

बांसवाड़ा जिला राजस्थान के दक्षिण भाग में समुद्र तल से 302 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस जिले का क्षेत्रफल 5037 वर्ग किलोमीटर है जिसे अब संभाग बना दिया गया है। बांसवाड़ा के आसपास का क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में समतल और उपजाऊ है, जिसके चलते इस क्षेत्र में मक्का, गेहूँ और चना प्रमुख फ़सलें हैं। बांसवाड़ा की खनिज सम्पद्दा में मुख्य रूप से लोह-अयस्क, सीसा, जस्ता, चांदी, मैंगनीज, रॉक फास्फेट, चूना पत्थर, संगमरमर, ग्रेफाइस्ट, सोपस्टोन, पाया जाता है। राजस्थान के चिलचिलाते रेगिस्तान की भीषण गर्मी और भयंकर सूखे के दिनों में भी, बांसवाड़ा की हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता देखकर आप हैरान रह जायेंगें। यहां ढेरों झरने, पहाड़ियां, महल और कई ऐतिहासिक इमारते हैं, जिनकी एक झलक के लिए ही विश्वभर के पर्यटक बेकरार रहते हैं, अब बात करते हैं यहां के कुछ सबसे खास पर्यटन और धार्मिक स्थलों की

आनंद सागर लेक: आनंद सागर झील राजस्थान की सबसे खास कृत्रिम झीलों में से एक है। इस झील को बाई तालाब के नाम से भी जाना जाता है। इस झील का निर्माण महारानी जगमाल सिंह की रानी लंची बाई ने करवाया था, जो जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। यह स्थान पवित्र पेड़ों से घिरा हुआ है, जिन्हें ‘कल्पवृक्ष’ के रूप में जाना जाता है। यह जगह यहां आने वाले यात्रियों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रसिद्ध है।  अब्दुल्ला पीर दरगाह: अब्दुल्ला पीर एक बोहरा मुस्लिम संत की फेमस दरगाह है, जो शहर के दक्षिणी हिस्से में स्थित है। यहां बोहरा समुदाय के द्वारा उर्स बड़ी ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। अगर आप बांसवाड़ा की यात्रा करने जा रहें हैं तो अब्दुल्ला पीर दरगाह पर भी जा सकते हैं। 

अंदेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर: अंदेश्वर पार्श्वनाथजी एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है जो कुशलगढ़ तहसील की एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। यहां पर दो दिगंबर जैन पार्श्वनाथ मंदिर हैं, जो 10 वीं शताब्दी के दुर्लभ शिलालेखों का घर है। यह मशहूर मंदिर बांसवाड़ा से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जैन मंदिर के अलावा यहां पहाड़ी पर शिव मंदिर, दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर और पीर दरगाह भी स्थित है। रामकुण्ड: रामकुण्ड बांसवाड़ा के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है जो तलवाड़ा से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। इस स्थल को फटी खान के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह पहाड़ी के नीचे एक गहरी गुफा में स्थित है। कुछ पौराणिक कथाओं में वनवास के दौरान भगवान राम के यहां आने का वर्णन मिलता है, जिसके चलते इस जगह की खास मान्यता है। यह स्थान खूबसूरत पहाड़ियों और हरियाली से घिरा होने के चलते पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है

डायलाब झील: डायलाब झील बाँसवाड़ा शहर का प्रमुख धार्मिक स्थल है जो बाँसवाड़ा शहर से जयपुर जाने वाले मार्ग पर स्थित है। यहां स्थित हनुमान मंदिर काफी संख्या में भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित करता है, इसके अलावा यह झील अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और खूबसूरती के चलते भी पर्यटकों के बीच काफी मशहूर है। कागदी पिक अप वियर:  शहर से 3 किलोमीटर दूर रतलाम रोड पर स्थित कागदी पिक अप वियर एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो यहां आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। यहां स्थित आकर्षक फव्वारों, बगीचों और जल निकायों को देखने के लिए भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।  यहाँ पर बच्चों के लिए पार्क, झूले और बोटिंग की सुविधा होने के चलते आप यहां अपने बच्चों के साथ भी आ सकते हैं। 

माही डैम: बांसवाड़ा से 18 किमी की दूरी पर स्थित माही डैम संभाग का सबसे बड़ा बाँध है। 3 किमी लंबा ये डैम राजस्थान का सबसे लंबा बांध है जिसमें 6 गेट हैं। इस डैम के पूरी तरह भरने के बाद जब इसके गेट खोले जाते हैं तो इस पुरे क्षेत्र का दृश्य बहुत ही अदभुद होता है। प्राचीन पराहेडा मंदिर: पराहेडा एक प्राचीन शिव मंदिर है जो बांसवाड़ा से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 12 वीं शताब्दी में राजा मांडलिक द्वारा निर्मित ये मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला और प्राकृतिक सुंदरता के लिए काफी मशहूर है। 

राज मंदिर: राज मंदिर पुरानी राजपूत वास्तुकला शैली का एक अदभुद नमूना है, जिसे सिटी पैलेस के रूप में भी जाना जाता है। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी के दौरान किया गया था। इस मंदिर के पास से पूरा शहर नज़र आता है। यह महल वास्तुकला प्रेमियों के लिए बेहद खास है। तलवाड़ा मंदिर: तलवाड़ा मंदिरएक प्राचीन मंदिर है जो आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां स्थित सिद्धि विनायक एक प्रमुख मंदिर है जिसे आमलीया गणेश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के साथ ही यहां स्थित सूर्य मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, सांभरनाथ के जैन मंदिर, महा लक्ष्मी मंदिर और द्वारकाधीश मंदिर प्रमुख हैं। 

त्रिपुरा सुंदरी मंदिर: त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, देवी त्रिपुर सुंदरी को समर्पित एक प्रमुख शक्तिपीठ है जो बांसवाड़ा से डूंगरपुर मार्ग पर 19 किमी की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर की देवी को तरतई माता के नाम से भी जाना जाता है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में एक काले पत्थर की सुंदर मूर्ति है जिसमें 18 भुजाएं हैं, जिसे ‘शक्ति पीठों’ का एक रूप माना जाता है। मां त्रिपुरा सुन्दरी का यह मंदिर देश-विदेश से भारी संख्या में पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। चैत्र और अश्विन नवरात्रि के दौरान यहां भारी संख्या में पर्यटक आते हैं और माता से मनोकामना मांगते हैं। 

मदारेश्वर मंदिर: बांसवाड़ा शहर से उत्तर-पूर्व की ओर स्थित मदारेश्वर महादेव मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।  पहाड़ी के अंदर स्थित इस गुफा मंदिर का प्राकृतिक स्वरूप पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। कल्पवृक्ष: कल्पवृक्ष रतलाम मार्ग पर स्थित एक भव्य पेड़ है जिसे समुद्र मंथन में उत्पन्न चौदह रत्नों में से एक माना गया है। पीपल एवं वट वृक्ष की तरह विशाल यह वृक्ष लोगों को मनोकामना को पूरा करता है। यह दुर्लभ वृक्ष है जिसका अपना धार्मिक महत्व है। आपको बता दें कि यहां कल्पवृक्ष जोडे़ यानि नर-मादा के रूप में स्थित है। जिन्हें राजा-रानी के रूप में जाना जाता है। इन दोनों में से नर का तना पतला है और रानी यानि मादा का तना मोटा है।

सवाईमाता मंदिर: सवाई माता मंदिर बांसवाडा से 3 किमी की दूरी पर स्थित है जहां 400 सीढ़ियाँ आपको सवाई माता मंदिर तक ले जाती हैं। इसके साथ ही यहां पहाड़ी की तलहटी में हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर भण्डारिया मंदिर भी स्थित है। प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा हुआ यहां का वातावरण पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है। मानगढ़ धाम: मानगढ़ धाम को राजस्थान के जलियाँवाला बाग के नाम से भी जाना जाता है। बांसवाड़ा से 85 किमी की दूरी पर स्थित इस जगह के बारे में कहा जाता है कि, यहां 17 नवम्बर 1913 को गोविन्द गुरू के नेतृत्व में, मानगढ़ की पहाड़ी पर स्वतंत्रता की मांग कर रहे पन्द्रह सौ राष्ट्रभक्त आदिवासियों पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसाकर उनकी हत्या कर दी थी। 

छींछ मंदिर: छींछ 12 वीं शताब्दी के समय निर्मित भगवान ब्रह्मा का एक प्रसिद्ध मंदिर है जिसमें आदमी की उंचाई के बराबर ब्रह्मा जी की मूर्ति है। यह मंदिर तालाब के किनारे स्थित है जो पर्यटकों को अपनी तरफ बेहद आकर्षित करता है। बताया जाता है कि यहां मंदिर में ब्रह्माजी के बाएं तरफ विष्णु की दुर्लभ प्रतिमा भी स्थापित है। सिंगपुरा: सिंगपुरा राजस्थान के बांसवाड़ा जिले से 10 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गाँव है। यहां की छोटी पहाड़ी, जंगल, झील और चारों ओर हरियाली इस जगह को बेहद खास बनाती है।  

चाचा कोटा: चाचा कोटा बांसवाड़ा शहर से 14 किलोमीटर दूर स्थित एक पर्यटन स्थल है। यह माही नदी पर बने बांध के पानी में बेहतरीन खूबसूरती से भरी एक प्राकृतिक जगह है। यहां हरी-भरी पहाड़ियां, समुद्र तट जैसा नजारा और जहां तक नजर जाए 'हर तरफ पानी ही पानी' नजर आता है। आस-पास की ऊंची-ऊंची पहाड़ियां, रास्ते के चारों तरफ हरा-भरा माहौल, सर्पीली टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें और झरने मिलकर इस स्थान को प्राकृतिक सुंदरता के लिहाज से बिल्कुल बेहतरीन बना देते हैं।

अगर आप राजस्थान के बांसवाड़ा जाने की योजना बना रहें हैं तो आपको बता दें कि यहां घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक के महीनों में होता है। बांसवाड़ा रेगिस्तानी राज्य में स्थित होने के कारण ज्यादातर लोग यहां सर्दियों के मौसम में जाना पसंद करते हैं। बांसवाड़ा राजस्थान राज्य का एक प्रमुख ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल है, जिसके चलते यह देश के बाकि हिस्सों से सड़क, ट्रेन और हवाई सभी माध्यमों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। अगर आप हवाई जहाज द्वारा बांसवाड़ा जाने की योजना बना रहें हैं तो बता दें कि यहां का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर में 160 किमी की दूरी पर स्थित है।  जो भी पर्यटक ट्रेन द्वारा बांसवाड़ा की यात्रा करने की योजना बना रहें हैं उनके लिए बता दें कि यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन रतलाम रेलवे स्टेशन है जो लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से बांसवाड़ा की ट्रिप का प्लान बना रहे लोग राजस्थान के किसी भी शहर से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।